यह किताब पढ़ी तो लगा कि सुशील शुक्ल पेड़ों की भाषा जानते हैं। पेड़ की भाषा जानने वाले मिट्टी, हवा, रंग और पानी भी भाषा भी जानते हैं। कि पेड़ की भाषा मिट्टी, हवा, रंग और पानी की भाषा से मिलकर ही तो बनती होगी।
इस तरह बनी भाषा मिट्टी सी कोमल, पानी सी तरल और हवा सी ताज़ी होगी। सात पत्तो वाला पेड़ की भाषा ऐसी ही है। अगर किसी को बताना हो कि हमने पेड़ में फूल और खुश्बू के बनने को देखा है तो ऐसी ही भाषा में बताया जा सकेगा।
तापोशी घोषाल के बनाए सप्तपर्णी के फूल पर भँवरे मँडरा रहे हैं। इनके साथ ज़रा ठहरें तो इनकी गुनगुन भी सुनाई देने लगेगी।
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